कितना ज़हर भरते हैं
हमसे बेखर हैं ओ, हम जिनकी खबर रखते हैं
चुपके से गुजरते ओ, हम फिर भी नजर रखते हैं
सुनाते हैं जिनको ओ, अपने सफर के किस्से
वही आ जातें हैं और, मुझको खबर करते हैं
हम जान रहे हैं कि ओ, चाल कैसे चलते हैं
क्या करेगें कब कहां, ख्याल कैसे पलते हैं
सादगी बस दिखावा, दिख रहा है उनका
देख लो चंदन कभी ओ, कितना ज़हर भरते हैं
दूर से सावन बसन्त, मधुमास मास दिखेगा
बजंर है ओ पानी न, आस- पास दिखेगा
हम भी सवार हैं यहां, तूफान के सर पर
देखतें हैं ‘राज’ में ओ, कितना असर करते हैं
राज कुमार तिवारी ”राज”
बाराबंकी उत्तर प्रदेश