“आदमी को छल रही है जिन्दगी”
अब गमों में पल रही है जिन्दगी
अश्क पीकर चल रही है जिन्दगी
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कैसे करें हालात को अपने बयाँ
सर्दियों में जल रही है जिन्दगी
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अब जवानी में नहीं कुछ जोश है
शाम जैसी ढल रही है जिन्दगी
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कह रहा इंसान अपने को खुदा
हाथ अपने मल रही है जिन्दगी
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‘रूप’ की परछाँइयों में आजकल
आदमी को छल रही है जिन्दगी
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)न