कविता

सलवटें

चेहरे पे सलवटें जब बनती है
अक्स जीवन की तब दीखती है
कितने पापड़ है इसने है  बेला
माथे पे लकीरों का लगा मेला

पग पग पर ठोकर है खाया
कीले पाँव में था चुभ आया
जख्म से टीस इसने है पाया
उम्र की दहलीज पर है आया

चौरंगी पथ सीखने को मिला था
जहाँ दुःख में अपना ना दिखा था
किस्मत ने था तब बैशाखी थमाया
फर्श से अर्श की राह था बतलाया

ये लकीरें अनुभव से आता है
सीखने की तरकीव बतलाता है
सुख दुःरव का था साथ संग आया
इस मुकाम पर है अब  पहुँचाया

चेहरे पे जब आती है सलवटें
समय पर बदल जाती हकीकतें
यात्रा सुबह से शाम को है देखा
कितने मुश्किल को हमने पाया

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088