कविता

जहां विजय पताका ही राह है

मुश्किल भरी जिंदगी में अशुद्धियां ।
संघर्षरत का दुनिया में विसंगतियां ।।
सरताज है अभिजय का जुनून ।
जो महा समर का है अर्जुन…. ।।
चल मुसाफिर व्यस्त हो कर जागा है ।
चंद्रहास का अब……. वक्त आया है ।।
कोयला से हीरा बनाने की तमन्ना ।
दीवानगी के प्रतिच्छाया सपना… ।।
तू तोड़ दे उस जंजीरों का बंधन ।
आफत की धारा का कर भंजन ।।
रख हौसला वक्त का आसार है ।
प्रारब्ध को बदलने गर्जन का आसार है ।।
जीत की आरजू हर ‘मानस’ का हो ।
विश्व पटल पर यही पुकार हंस का हो ।।
कर अटूट फैसला उन्माद रख विश्वास है ।
यथार्थ में जीत का हवस का आस है ।।
पराभाव का
अफसाना दूभर नहीं आगाह है।
जहां विजय पताका ही राह है ।।
आन बान शान का दास्तां दोस्ताना है ।
बुलंदी तो साहचर्य का परवाना है ।।
— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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