समर्पित
नाउम्मीद होते आंखो से
टकटकी लगाए
देख रहे हैं रस्ता अपनों का
बड़े लाड़ से पाला था जिनको
असंख्य अभिलाषा पूर्ण किए जिसके
आज भूले बैठे हैं वो उनको !
धुंधली आंखें,थकती सांसें
बड़े बेबसी से याद करते
अपने आंखों के तारों को
दिल में मिलने की चाह लिए
हर दिन देखें राह उनकी
जाने वो कब आए ?
इनकी अतृप्त इच्छाओं को
कौन पूर्ण कर जाए!
बाद मरने के
अग्नि में कौन समर्पित कर जाए !
— विभा कुमारी “नीरजा”