मुसाफ़िर हैं हम तो इस दुनिया में – एक अैसे कारवान के
ज़िनदगी में जो कभी भी – आगे बढ़ने से ढरता नही है
शोला हैं हम तो ज़िनदगी की – उस जलती हुई आग के
भडकने से और ज़ियदा – जो कभी भी रुकता नही है
जज़बा बुहत है हम में – किसी की भी इमदाद करने का
चढ़ते सूरज को फिर भी – हम कभी भी सलाम करते नही हैं
काम है हमारा इस दुनिया में – थाम लेना किसी भी गिरती दीवार को
बे वजाह किसी दीवार के साऐ में – हम कभी बैठते नही हैं
बू वफ़ा दारी की ही हमेशा – आए गी हमारे पसीने से
ख़ून बे वफ़ाई का तो हमारी – रगों में दौडता ही नही है
दम हम में हमेशा से ही है – दरया की मौजों से लडने का
नज़ारा ढ़ूबने वालों का साहल पर – बैठ कर देखते नही हैं
फ़न रखते हैं हम हर हाल में – ज़िनदगी में ख़ुश रैहने का
जज़बा जीने का है हम में – हारने के बारे में सोचते नही हैं
दरद दूसरों के दिलों का – हम समझते हैं अछी तराह से
ग़मों को रखते हैं पास अपने – दामन किसी और का भरते नही हैं
तमनाऐं अपनी दबा के रखते हैं – हमेशा अपने ही दिल में
छुपा के रखते हैं अपने ग़मों को – ज़ाहर आँखों से करते नही हैं
राज़ कोई ज़ाहर हो ना जाए – कभी भी हमारे चेहरे से
दबा कर रखते हैं अपने लबों को – बे वजाह बोलते नही हैं
बढ़ी ही सादगी से बसर करते हैं – हम तो अपनी ज़िनदगी को ‘मदन’
दोआएं करते हैं अपने परमातमा की – किसी और से ढ़रते नही हैं
ख़ुदा कैसे आप बन गैए हैं हमारे – जो समझते ही नही हमारी बात को
ग़मे दौराँ में भी हम तो आप से – कभी भी जुदा हुऐ ही नही हैं