बाल कविता

हार को ही उपहार बना लो

हार को ही उपहार बना लो,
तमस को उजियार बना लो,
ढूंढने से आनंद मिलेगा न कहीं,
आनंद को जीने का आधार बना लो.
हार भी है एक सबक प्यारा,
हार को आगोश में भर बढ़ते जाओ,
तब हार भी छिपने को खोजेगा कोना,
तुम जीत के उसे श्रंगार बनाओ.
विश्वास हमारा अमर सदा,
असफलता से हम डरते नहीं,
असफलता ही सफलता की सीढ़ी है,
इससे घबरा पीछे हम हटते नहीं.
आगे-आगे कदम बढ़ाते,
बाधाओं से नहीं घबराते,
तमस को उजियार बनाते,
हार को ही उपहार बनाते.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244