प्यार की धुन
रंगबिरंगे पक्षी पेड़ पर, बैठे करते थे संवाद,
आज विचार हमें करना है, कैसे जग हो सकता शाद!
प्रेम का जाल बिछाकर मानव, बोटी-बोटी काट रहा,
करता है सद्भाव की बातें, वैर-अमर्ष है बांट रहा.
हरे-भरे वृक्षों को काटकर, हमको बेघर करता है,
नहीं जानता जड़-अज्ञानी, दुःखों से घट भरता है!
जाति-धर्म के झगड़ों में और भाषा-भेद के लफड़ों में,
बंटा हुआ है खुद ही आदमी, बंद भेद के पिंजड़ों में.
पर्यावरण शुद्ध रहेगा कैसे, बातें बड़ी-बड़ी करता!
प्लास्टिक-प्रयोग न छोड़े, मुश्किलें खुद ही खड़ी करता.
इनसे तो हम पंछी बेहतर, मिल-जुलकर तो रहते हैं,
सब खुश हैं तो हम भी खुश हैं, प्यार की धुन में कहते हैं.