कविता

होली में मिलते हैं

होली  के  दिन  इस  सब लोग ,
यहां  रंगों  से रंगीन  मिलते  हैं ।
वरना  दूसरे  दिन  जिंदगी  की ,
वजह से सब गमगीन मिलते हैं ।।
बे परवाही  दिखती  है हर  शख्स ,
हर चेहरा की रंगों में डूबे खुशी से ।
किसी  दूसरे दिन  हर इंसान कुछ ,
अलग ख़्यालात जहीन मिलते हैं ।।
हरेक कसमों  रस्मों को तोड़कर ,
अपनी हर दुनियादारी छोड़ कर ।
कई  रंगों में  रंगी  अलग  ही नए ,
रंग में ये रंगीले संगीन मिलते हैं ।।
जिसके  बुलंद हो हौसले चाहे ही ,
एक कर दे जमीं आसमा चाहे ही ।
असलियत में  इस इंसां के पांव से ,
जीवन जगजीत जमीन मिलते हैं ।।
अकेले  हम  ही  शामिल  नहीं ,
इस  रंग  में  रंगीले  अंदाज  में ।
नजरें  मिली  तब  मुस्कुराते  हुए ,
हुस्न मोहल्ले से हसीन मिलते हैं ।।
जीवन  रूपी  रंगशाला  आहुति ,
प्रेम की सप्रेम की इश्क मोहब्बत की ।
तेरा  अर्पण  और  मेरा  पूर्ण  समर्पण ,
जिंदगी में जिंदादिल शौकीन मिलते हैं ।।
जरा  सुनो  जिंदगी  तस्वीर  भी  है ,
तकदीर  भी  है  फर्क  रंगों  का  है ।
मनचाहा  रंगों  से  बने  तो  तस्वीर  ,
अंजाने रंगों से तो नसीब मिलते हैं ।।

मनोज शाह 'मानस'

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