कविता

नम्र बनके रहो

नम्र बनके रहो हर खुशहाल पल तुम्हारा है
बुजुर्गों ने कहा यह जीवन का सहारा है
सामने वाले से कहो तुम अज्ञानी नहीं हो
मैं ज्ञानी नहीं हूं जीत पल तुम्हारा है
नम्र बनके रहो खुशहाल पल तुम्हारा है
मैं मैं का विकार अज्ञान का ढारा है
नम्रता गहना ज्ञान का सहारा है
ज्ञानी को अज्ञानीं से भी ज्ञान का
गुण लेना गुणवत्ता का सहारा है
बड़े बुजुर्गों के जीवन का हमें अटूट सहारा है
बड़े बुजुर्गों ने अहंकार पर तीर मारा है
कहावतों में ज्ञान बहुत सारा है
नीवां होके ग्रहण करो ज्ञान तुम्हारा है
— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया