कविता

भ्रूण हत्या

आधुनिकता का आवरण ओढ़
विज्ञान के बढ़ते कदमों की ओट ले
कुतर्को की ढाल लेकर
मर चुकी मानवता और इंसानियत के लंबरदारों,
अधिक सोच विचार न करो
मुझे मां के गर्भ में ही मार दो।
मुझे पर तुम्हारी दुनिया में होने वाले
संभावित दुर्व्यवहार से बचा लो
मैं भी तो यही चाहती हूं
आपको विवशता,तनाव से बचाना चाहती हूं
पालन, पोषण, शिक्षा शादी के लफड़े से
आप सबको मुक्त रखना चाहती हूं
डर डर कर जीने से मैं खुद भी बचना चाहती हूं
छेड़छाड़, हिंसा, दुर्व्यवहार और बलात्कार का
दंश नहीं झेलना चाहती हूं
आपकी पीड़ा, दर्द, दुर्भाग्य का
कारण नहीं बनना है मुझे
जबरन आपकी बेटी,बहन कहलाने का
तनिक भी शौक न मुझे
आपको खुशहाल देखना चाहती हूं
मां को लड़की पैदा करने के कोप से
बचाना भी चाहती हूं,
मां भी पहले एक लड़की ही तो है
जबसे गर्भ में आई हूं
उसको पढ़ ही तो रही हूं
आप सबकी आंखों में तैर रहे सपने को भी
रोज रोज आत्मसात कर रही हूं।
अभी तो मैं मां के गर्भ में हूं
विरोध भी नहीं कर सकती
पर आपको यह अधिकार देती हूं
मां के गर्भ में ही मुझे मार दो
उहापोह में मत फंसिए
भ्रूण हत्या का सेहरा गर्व से बांध लीजिए
और बहुत खुश रहिए,
खुलकर मुस्कुराइए और मस्ती कीजिए
कन्या के बोझ से सिर्फ आप ही क्यों
अपने समाज को भी बचाकर रखिए।
भ्रूण हत्या के पाप से बचने के लिए
कन्या विहीन समाज का कानून
संसद से पास करवा लीजिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921