ये औरतें भी ना
ख़ुद रूठती, मान भी ख़ुद जाती हैं
आँखों से झरते टेसू, ख़ुद पोंछती हैं
सचमुच देखो बड़ा ड्रामा करती हैं
ये औरतें भी ना
ख़ूबसूरत दिखना भी चाहती हैं
ख़ुद को ज़रा संवारती भी नहीं
चाहती हैं जी भर खिलखिलाना
पर खुल कर मुस्कुराती भी नहीं
सचमुच देखो बड़ा ड्रामा करती हैं
ये औरतें भी न
गर्मियों में हो कर हैरान-परेशान
बारिशों में भीगने का करें इंतज़ार
पावस जब आये तो लोक-लाज
के मारे, घर में छुपी रहें मन मार
सचमुच देखो बड़ा ड्रामा करती हैं
ये औरतें भी न
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”