दोहे – छल-बल का परित्याग
छल-बल में क्या रखा,ये लाते दुष्परिणाम।
पतन सुनिश्चित ये करें,हैं दुख के आयाम।।
छल-बल मात्र प्रपंच हैं,बचना इनसे आज।
वरना तय होगा यहाँ, झूठ-कपट का राज।।
छल-बल तो अभिशाप हैं,नीचा करें चरित्र।
इनसे बिगड़े है मनुज,होता थोथा चित्र।।
छल-बल को त्यागो अभी,तभी बनेगी बात।
वरना जीवन को समझ,ख़ुद की ख़ुद पर घात।।
छल-बल को जो मानते,बढ़ने का आधार।
उनसे बंदे दूर रह,मत करना तू प्यार।।
छल-बल को धिक्कार दे,तभी पलेगा नूर।
जो विवेक को धारते,करते दुर्गुण दूर।।
छल-बल रावण ने किया,हुआ पूर्ण अवसान।
छल-बल हरते शान हैं,हर लेते सम्मान।।
छल-बल गति-मति मारते,बनते दुख-आधार।
छल-बल में अँधियार है,जीवन पर हैं भार।।
छल-बल लाते हैं रुदन,देते ख़ुद को मात।
इनसे होता दूर जो, वह पाता सौगात।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे