बाल सुलभ मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति : बाल किशोर कहानी संग्रह– सुम्मी चिड़िया की सीख”
साहित्य सृजन करना,और साहित्य में जीना बिलकुल अलग बात है,बाल कहानीकार श्री टिकेश्वर सिन्हा जी,इन बातों में यदि कोई मेल खाता है तो वह है ,साहित्य में जीना।श्री सिन्हा सर जी वास्तव में साहित्य के लिए जीते हैं।चौबीस घंटे चौबीस पहर,सिर्फ और सिर्फ साहित्य के लिए समर्पित रहते हैं। इनके दूसरे पहलू की बात करें तो इनका सारा ध्यान,मनन चिंतन,बाल साहित्य सृजन पर आ टिकता है।ऐसा भी नहीं है की वे मात्र बाल साहित्य ही लिखते है,श्री सिन्हा जी की लेखनी सामाजिक स्वच्छता,पारंपरिक,ऐतिहासिक,और समसामयिक साहित्य पर भी आबाध गति से चल रही है!जिसमे उनका जीता जागता उदाहरण लघुकथा,कहानी, लेख,आलेख, हायकू, नई कविता आदि है।लेकिन घुमफिर कर उनकी लेखनी वहीं आके रुक जाती है,जहां से वह बाल साहित्य की सृजन कर सके।और इस बाल साहित्य सृजन में उनका कोई जवाब नही हैं।इस मामले में वे बेजोड़ हैं।जिसमें उन्होंने बाल कविता,बालकहानी,बाल पहेली,लिखने में अपनी विशेष पहचान बनाई है। और इसी पहचान को बरकरार रखते हुए उन्होंने बाल सुलभ मनोभावों को सुंदर अभिव्यक्त करते हुए बाल किशोर कहानी संकलन के रूप में “सुम्मी चिड़िया की सीख” सृजन कर डाली। जिसमें उन्होंने बाल मन में उठने वाली जिज्ञासा,अभिलाषा,निष्ठा,प्रेम,
सातवीं कहानी “खुशियां लौट आई” हैं,जिसमें जंगल में रहने वाले प्राणियों के माध्यम से यह बताया गया की एकता और भाईचारे से बड़े से बड़ा समस्या का समाधान हो जाता है,जैसे की उन्होंने मिलजुलकर अपने जंगल में बांध बनाकर जल की समस्या को दूर कर लिया।आठवीं कहानी “मटके का पानी” है जिसमें ज्ञान–विज्ञान की बात करते हुए कहानीकार ने मटके का पानी ठंडा क्यों होता है ? इस पर उन्होंने मटके के अनगिनत छिद्रों से वाष्पीकरण का होना बताया। इसी प्रकार क्रमशः “महत्वाकांक्षा” में प्रणव के अनुरूप लकड़ी के काम करने हेतु माता–पिता द्वारा प्रोत्साहित करना।मनु समझ गया,बाइक ड्राइविंग, सुम्मी चिड़िया की सीख,शौचालय बन गया, जननी जन्मभूमिश्च, र्अहसास,हैप्पी दिवाली,इस बार की होली कहानियां सुंदर बन पड़ी है,जिसमे कहानीकार सुंदर मुहावरें जैसे– पौ फटना,दिल पजीसना,आंखों से ओझल होना, सिट्टी–पिट्टी गुम होना,आदि का उपयोग करते हुए प्रकृति पर्यावरण व आंचलिक,सरल सहज भाषा और भावों को कलात्मक बना दिया है।और अपनी बाल मनोवृति का परिचय देने में सफल हो पाए।जिसको पढ़कर बाल किशोर मन को जरूर सीख मिलेगी।
समीक्षाकार– अशोक पटेल “आशु”
कृति का नाम–सुम्मी चिड़िया की सीख
कृतिकार–श्री टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”
प्रकाशक–मधुर प्रकाशन बालोद, (छ ग)
मूल्य–₹ 250