गीत “आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा”
गीत “आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा”
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रौशनी का सिलसिला कैसे चलेगा?
आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?
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कामनाओं का प्रबल सैलाब जब बहने लगा,
भावनाओं का सबल आलाप ये कहने लगा,
नेह का बिरुआ यहाँ कैसे पलेगा?
आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?
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लोच है जिनके बदन में, वो सभी रह जायेंगे,
जो तने-अकड़े हुए हैं, वो सभी ढह जायेंगे,
आचरण-व्यवहार अब कैसे फलेगा?
आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?
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आँधियों का दौर है, क्यों खेलते हो आग से,
मन-बदन शीतल बनाना, फाल्गुन की फाग से,
रंग के बिन दिवस अब कैसे ढलेगा?
आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)