नारी की सादगी
सादगी तेरी श्रृंगार है तुम्हारी
फिर भी वासना की मारी है नारी
क्यूँ मुसीबत की तुम होती शिकार
रहना जग वाले से री होशियार
गाय सी सीधी तेरी हर व्यवहार
भारतीय नारी हया की संस्कार
लज्जा शर्म तेरी अमूल्य नीधि है
तुम घर की लक्ष्मी तूँ रिद्धि सिद्धि है
करूणा की देवी की तुँ है अवतार
गृहस्थ जीवन तेरी है असल संसार
सास ननद की तंज तुम सहती हो
कभी किसी को कुछ ना कहती हो
खुद कष्ट सह अपना परिवार बसाया
नीज स्वार्थ को अलविदा कर आया
भूखा सुखा रह नौनिहाल को है पाला
अपने ही तन का निकाला है दिवाला
कुर्बानी तेरे मन में छिपा है अन्दर
तुँ ममता की अथाह विशाल समन्दर
सीधी सादी चाल चलन है तुम्हारी
प्रकृति में सबसे अलग है तूँ नारी
मेरी नजरों में तुम्हारा बहुत है सम्मान
जगत ने दिया है देबी दुर्गा का मान
दफन कर दिया है नीज का अरमान
तेरी ऑचल है जैसे नीला आसमान
— उदय किशोर साह