धोखा
वे ढूंढ रहे हैं दोष हमारे
जब से हुए हैं उनके बारे- न्यारे ।
वे कभी हमारी डांट पर भी मुस्कुराते रहते थे
आज हम मौन हैं और वे आंखें दिखा रहे हैं ।
हमने उन्हें बढ़ने दिया साथ-साथ डगर पर
वे हमीं को धकेल कर आगे बढ़ गये हैं ।
उनके मन में दिन-ब-दिन बढ़ रही है कलुषता
हम अभी भी प्रेम के वे बीते पल ढूंढ रहे हैं ।
उनके मासूम चेहरे से खाया है धोखा
आज अमीरी के मुखोटे में वे कुटिल हंसी हंस रहे हैं ।
अब उनकी बातें हुई हैं जहरीली
फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी हमें पता है ।
खून पीकर भी उनकी प्यास बुझती नहीं है
वे कर लें लाख अभिनय सच्चाई किसी से छिपती नहीं है ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा