कविता

धोखा

वे ढूंढ रहे हैं दोष हमारे
जब से हुए हैं उनके बारे- न्यारे ।
वे कभी हमारी डांट पर भी मुस्कुराते रहते थे
आज हम मौन हैं और वे आंखें दिखा रहे हैं ।
हमने उन्हें बढ़ने दिया साथ-साथ डगर पर
वे हमीं को धकेल कर आगे बढ़ गये हैं ।
उनके मन में दिन-ब-दिन बढ़ रही है कलुषता
हम अभी भी प्रेम के वे बीते पल ढूंढ रहे हैं ।
उनके मासूम चेहरे से खाया है धोखा
आज अमीरी के मुखोटे में वे कुटिल हंसी हंस रहे हैं ।
अब उनकी बातें हुई हैं जहरीली
फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी हमें पता है ।
खून पीकर भी उनकी प्यास बुझती नहीं है
वे कर लें लाख अभिनय सच्चाई किसी से छिपती नहीं है ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111