बे वजाह की तमनाएं – हम अपने दिल में नही रखते
थ़वाहिशो के समुनदर में – भी हम कभी नही बैहते
कमी वैसे ते कोई नही है – ग़मों की ज़िनदगी में
मगर दम तो हमेशा ही – साथ ख़ुशियों के हैं हैते
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बाज़ बे शक नही आती – ज़िनदगी इमतिहान लेने से
मगर सामना सवालों का – ख़ुशी से हमेशा हैं करते
कोशिश रही है ज़िनदगी की – हमें तो परेशान की
हम ही हैं जो इस ज़िनदगी से – कभी भी नही हैं ड़रते
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ज़िनदगी तो जेखती है ज़िनदगी को – बात ख़ुद की है करती
ज़िनदगी खेलती है ज़िनदगी से – पासा भी नही पलटती
मशवरा इस लिये हम कभी भी – लेते नही हैं ज़िनदगी से
आता है जो हमारे मन में – वोह ही तो हम हैं करते
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ज़िनदगी बदलती है निज़ाम अपना – बदलते मऔसम की तराह
इसी लिये तो बात ज़िनदगी की – किसी से बनती नही है
रास आ जाती है उसे – बन जाता है जो ग़ुलाम इसका
वरना देख ली जिये लोग – इस सेकिस तराह है उलझते
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ज़िनदगी तो बे वजाह ही – इलझती है दुनिया वालों से –मदन–
सामना करती नही यिह – राह अपनी पर जो हैं चलते
बरबाद बे शक कर दिया हो – हमें इस ज़िनदगी ने
अज़म बर क़रार है अपना – ज़िनदगी से हम नही ड़रते