समय की चाल
नीति नियत कर्म जिसका सौ प्रतिशत खराब है
जिसके परिवार का हर सदस्य ही गुनहगार है
जिसके आतंक का फैला साम्राज्य है
जिसके गुर्गों की संख्या आखिर कितनी है
औरों की छोड़िए खुद उसे भी नहीं पता है
लूटमार, हत्या, अपहरण, रंगदारियां
उसके नीति धर्म की कथा कह रहे हैं
खूंखार दरिंदे की नई पटकथा सुना रहे हैं।
औरों की धन संपत्ति जमीन मकान पर
कब्जा करना उसका प्रिय शगल रहा है,
कानून को ठेंगा दिखाना उसका शौक रहा है।
राजनीतिक संरक्षण और उसका आवरण
उसे फलने फूलने का हौसला देता रहा
पूरा परिवार, बहुत से रिश्तेदार, इष्ट मित्र भी
उसके हमराह बन उसको बल देते रहे हैं
उसकी छाया में वे भी अपनी धाक जमाते रहे
बड़ी बेहयाई से मनमानियां और जुर्म करते रहे
धमकियों की आड़ में न्याय को पलीता लगाते रहे।
अब जब समय, सत्ता, शासन का मिजाज बदला
तब उसे लोकतंत्र से ही बहुत डर लग रहा है
मौत का खौफ अब उसके सिर चढ़कर बोल रहा है
अब उसे औरों की नियत खराब लगने लगी है।
उसकी हर सांस पर अब खौफ का सख्त पहरा है
अब उसे लगता है जीवन का तो राग बड़ा गहरा है
आतंक के बादशाह पर आज आतंक का साया है
कल तक क्या हो रहा था और आज क्या हो रहा है
जब समय की चाल उसकी नींद हराम कर रहा है।
अब तो उसके डर का आलम साफ दिखाई देता है
पत्ता खड़कने पर भी, उसे यमराज नजर आता है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक, स्वरचित