कविता

बेरोजगारी

एमए बीए पढ़ के
डिग्रियों की ढेर है
फिर भी मैं लाचार हूं
क्योंकि, मैं बेरोजगार हूं।

भरा पूरा परिवार है
पढ़ लिखकर खुशहाल है
सब के सब सुयोग्य है
फिर भी मैं असंतुष्ट हूं
क्योंकि,मैं बेरोजगार हूं

पति का तनखाह लाखों है
साज सज्जा भी अच्छा है
बच्चें भी सब कहना माने
फिर भी मैं मजबूर हूं
क्योंकि मैं बेरोजगार हू।

सुना हूं मां बाप और
बड़ो के आशिर्बचनो से
जीवन नैया सरल हो जाती
फिर भी मन खिन्न है
क्योंकि मैं बेरोजगार हूं।

ईश्वर पर भरोसा हैं
मार्ग कठिन पर असंभव नहीं
जिन्होंने यहां तक पहुंचाया है
फिर भी मन उदास है
क्योंकि मैं बेरोजगार हूं।

— बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।