कविता

दिवास्वप्न हो तुम

 

कितने पास थे तुम कुछ दिन पहले तक

अब तो दिवास्वप्न से लगते हो,

क्या कहें हम तुम्हारी कारगुज़ारी पर

संवाद नहीं रहा जब हमारे बीच

लोगों की कानाफूसी जारी है

जो पूरी तरह जायज भी है,

लोग बातें तरह तरह की तो बनाएंगे ही

पहले हम तुम बहुत पास साथ साथ थे

आज जब तुम दूर बहुत दूर हो

बिल्कुल दिवास्वप्न से जो बन गए हो।

सच तो सच ही न लोग झूठ नहीं कहते हैं

आखिर तुम दिवास्वप्न ही तो लगते हो।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921