कविता

/ आधुनिकता के आईने में /

दौड़ते रहते हो तुम? जग में अकेला !
कहाँ तक ? कब तक ?
क्या पाया तुमने अब तक
इस दौड़ में ? अपने आपको भूलकर
कौन हो तुम ? मनुष्य हो या यंत्र !
न प्राण है तुम में, न मनुष्य होने की चेतना
अलग हो गये हो,
अन्य जीव, जंतुओं से ?
बंधु – परिवार, मित्र, पुत्र-पुत्री, पोता-पोती,
सामूहिक जीवन से अलग
यह कौनसा जीवन है?
आधुनिकता के नाम पर !
मिटाओ थकावट भाई !
किसी पेड़ की छाया में
आराम करो, देखो अपनी चक्षु से-
सीधे – सादे जीवन में ही
मिलती है मन को शांति
सरल, सहज बनोगे तो
सभी जन अपना लगेंगे
जिंदगी दौड़ नहीं,
करोड़ों रूपये की तलाश नहीं,
जिंदगी सबके प्रति एक प्यार है
सबके साथ, सबको जोड़कर
अपना कुछ बाँटते आगे का कदम है,
स्वार्थ एक विकार है, रोग है मनुष्यता का
चुपके से, अपने को छिपाकर चलना,
छीनना, झपटना, झूठ बोलना,
नीति-नियमों को तोड़कर
लोक हित का परवाह न करना,
रिश्वत, भ्रष्टाचार, मिथ्याचार,
वर्ण-जाति, धार्मिक भेद-विभेद
विभिन्न रूप हैं उसका,
बढ़प्पन का मोह, अधिकार का दाह
वह जिंदगी खोखली है
बड़ी धोखा है अपने का, औरों का।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।