कविता

मानवीय मूल्यों का तमाशा

कौन कहता है कि
मानवीय मूल्य संतोष लाते हैं,
लाते भी होंगे मगर तब
जब हम मानवीय मूल्यों का
अपने जीवन में पालन करते होंगे।
मगर आज कौन इन बेकार की बातों पर
तनिक भी ध्यान देता है
आखिर दे भी क्यों ?
मानवीय मूल्यों का अनुसरण करने वाला
सरेआम बेवकूफ जो ठहरा दिया जाता है।
ये मानने के भी आज कोई मायने नहीं है
कि मानवीय मूल्य जीवन सुखी बनाते हैं,
आज के हालात और माहौल में
मानवीय मूल्यों का उपहास उड़ाया जा रहा है
जीवन सुखमय तो तब होगा
जब मानवीय मूल्यों का पालन करने वाला
सूकून से जीने पायेगा।
आज तो मानवीय मूल्यों का
चौराहों पर तमाशा बनाया जाता है
मानवीय मूल्यों और उसके पालनकर्ता को
मुंह चिढ़ाया और आइना दिखाया जाता है
खून के आंसू रोज रुलाया जाता है
मानवीय मूल्यों को निस्तेज कर दिया जा है।
मानवीय मूल्यों को कदम कदम पर
बेदर्दी से ठोकर मारा जा रहा है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921