कविता

वर्दी में भी इंसान है

हम भी इंसान है
हमारे अंदर भी संवेदनाएं हैं
हमारा भी घर परिवार है
हमारे भी माँ बाप, भाई बहन
बीवी बच्चे, परिवार रिश्तेदार हैं।
हमारे भी सीने में आपकी तरह दिल है
जो धड़कता भी है,
खुशी और दर्द का अहसास हमें भी होता है।
वर्दी पहनने भर से हम पत्थर नहीं हो जाते
अपने कर्तव्य और आप सबकी ही नहीं
समाज और मुल्क की खातिर
थोड़ा कठोर भर हो जाते हैं,
इसका मतलब ये तो नहीं
कि हम इंसान ही नहीं रह जाते
और संवेदनाहीन हो जाते हैं
आप भले ही कुछ सोचते हैं
बहुत कुछ कहते भी रहते हैं
हममें हमेशा बुराइयां ही निकालते हैं,
पर हम अपनी जिंदगी दाँव पर लगाते हैं
अपनी और अपने परिवारों की आकांक्षाओं का खून करते,
फिर भी कर्तव्य निभाते हैं,
अपने मन की अभिलाषाओं का
तीज त्यौहार की तिलांजलि देकर
आप सबकी खातिर घर परिवार से दूर
आपकी खुशियों में ही अपनी खुशियां मान
निष्ठा ईमानदारी से कर्तव्य निभाते हैं,
वक्त पड़ने पर बेखौफ होकर
जान की बाजी लगा जान बचाने का
हर संभव प्रयास भी करते हैं,
कभी सफल हुए तो कभी असफल
पर हार तो नहीं मानते
कभी जान देकर भी इतराते हैं,
असफल होने पर हम खुद को ही धिक्कारते हैं।
परंतु हम भी इंसान हैं
कोई भगवान तो नहीं
आप लोग क्या कुछ नहीं कहते
बेवजह सच जानें बिना आरोप लगा देते हैं
अकर्मण्य ही नहीं
चोर, बेइमान और जाने क्या क्या नहीं कहते हैं,
पर एक बार भी हमारे भीतर के इंसान को
पढ़ने समझनेकी जहमत उठाना नहीं चाहते,
क्योंकि आपको हम वर्दी वाले इंसान
हाड़ मांस के इंसान जो नहीं लगते,
हमारी पीड़ा, सिसकियां आप सब
कभी सुनना ही नहीं चाहते,
वर्दी में हम आपको इंसान नहीं लगते,
कहते भी नहीं फिर भी कहते रहते हैं
हम भी इंसान हैं जनाब भूत नहीं,
हम भी किसी के बेटे,बाप भाई
और मांग के सिंदूर हैं,
बहन की राखी का विश्वास
परिवार के जिम्मेदार हैं
किसी के बुढ़ापे की लाठी
तो किसी की आँखो का नूर हैं
मगर हम कहें तो किससे कहें
हम वर्दी की आड़ में कितने मजबूर हैं।
बस आप एक बार ही सही सोच तो बदलिए
कि वर्दी में भी तो एक अदद
आप सबकी ही तरह
चलता फिरता जीवित इंसान है,
जिसके लिए उसकी वर्दी ही
उसका जाति धर्म ईमान और जान है
वर्दी ही उसकी संपूर्ण पहचान है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921