गीतिका/ग़ज़ल

सलोने स्वप्न

दर्शन के लिए दूर से, आए हैं देखिए।
कितने सलोने स्वप्न, सजाए हैं देखिए।
बरसेंगे या उड़ेंगे, कभी कुछ पता नहीं
बादल घने – काले बहुत, छाए हैं देखिए।
मेला लगा कलियों का, सुभग वाटिका के बीच
तितली – भ्रमर भी. इत्र लगाए हैं देखिए।
कम आय में परिवार को, है  पालना कठिन
सिर पर समस्त भार, उठाए हैं देखिए।
घनघोर अंधकार है, लघु दीप हाथ में
ऊपर से भय के भूत , छिपाए हैं देखिए।
पिटती रही युवती, किसी का मुँह नहीं खुला
कहने को लोग बाँह, चढ़ाए हैं देखिए।
कितनी है भीड़, जेल से छूटा है माफिया
उपहार – हार मित्रगण, लाए हैं देखिए।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ 226022 दूरभाष 09956087585