राजनीति

गाँव का विकास

संत्री से मंत्री तथा प्रधानमंत्री तक गाँव के विकास या कहें अंतिम आदमी तक के विकास की बात नित प्रति बडे बडे सेमीनार तथा टीवी पर प्रायोजित भाषणों मे करते रहते हैं। अनेकों योजनायें भी ग्रामीण विकास को केन्द्र मे रखकर ही बनायी जाती हैं।
हमारी चुनाव प्रणाली का भी अध्ययन करें तो पायेंगे कि इस प्रक्रिया ये भी अन्तिम छोर तक का व्यक्ति विकास की इस प्रक्रिया से जुडा है। यहाँ हमे कुछ बातें समझनी होगीं जिसमें सर्वप्रथम गाँव के विकास के मायने क्या हों? और इस विकास के होने अथवा नही होने देने के लिये कौन उत्तरदायी है? नेता-अधिकारी अथवा स्वयं जनता जिसके लिये विकास की बात की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिये क्या क्या सुविधाएं होनी चाहिये?
आज देश के लगभग सभी गाँव मे पक्की सडकें हैं। इन्टर तक के स्कूल आसपास के गाँव मे और डिग्री स्कूल भी हैं। पीने के पानी का प्रबन्ध भी अधिकतर है। वर्तमान युग की महत्वपूर्ण आवश्यकता इन्टरनेट सब जगह मौजूद है।
ग्राम प्रधान, पंचायत अध्यक्ष विधायक, सांसद आदि के माध्यम से अत्याधिक धनराशि का आवंटन विकास के लिये किये जाता है। किसानों को कृषि यंत्र सरकारी सहायता छूट के माध्यम से न्यूनतम दाम पर उपलब्ध कराये जाते हैं। गांव मे विद्युत आपूर्ति बेहतर और न्यूनतम दाम पर उपलब्ध है। शिक्षा के क्षेत्र में पब्लिक स्कूलों की गाँव मे बाढ आ गयी है। जितने भी औद्योगिक क्षेत्र बनते हैं वह भी शहर से दूर ग्रामीण क्षेत्रों मे ही बनाये जाते हैं। ग्रामीणों के लिये अनेक लघु उद्योग योजनाओं को प्राथमिकता दी जाती है। गाँव गाँव में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र हैं।
इतना सब होने के बावजूद गाँव और ग्रामीण का विकास न हो पाने के कारणों पर विचार करना आवश्यक है। विचार करें क्या किसी सरकारी मंत्रालय को सुदूर गाँव मे बनाया जा सकता है अथवा किसी अंतरराष्ट्रीय कम्पनी का कार्यालय स्थानांतरित किया जा सकता है? शायद आपका भी उत्तर होगा नही। विचार करना होगा कि क्यों हमारे बच्चे शहर से 5-10 किमी दूर गाँव मे भी नही रहना चाहते? गाँव के स्कूलों में पढना अपमान क्यों लगता है? सभ्यता संस्कृति और संस्कारों का निर्वाह क्यों भारी लगने लगा? शहर के बच्चे प्राइवेट सैक्टर मे नौकरी करने को वरीयता देते हैं और गाँव के बच्चे चाहे सारा जीवन बीत जाये, मजदूरी करते रहें, मकान खेत बेच दे मगर उनका सपना है केवल सरकारी नौकरी जो एक बार लग गयी तो गाँव आकर झाँकना पसन्द नही करते।
एक प्रश्न आता है साफ सफाई का तो प्रधान तथा पंचायत क्यों सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति नही करते? गाँव का आदमी अपने गाँव मे मजदूरी नही करना चाहता। इसे वह अपमान समझता है। भ्रष्टाचार भी बहुत बडा कारण है गाँव से पलायन का। प्रधान सचिव, पटवारी और भी न कितने लोग हैं जो हर कदम पर लूट मे शामिल हैं। खुद ग्रामीण भी इस लूट का हिस्सा हैं। पता नहीं कौन सा तन्त्र इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पायेगा। एक प्रश्न और भी है ग्रामीण क्षेत्र में रहने वालों की सरकारी योजनाओं को लूटने की मानसिकता और उसकी पूर्ति के लिये भ्रष्ट तंत्र का प्रभावी होना।
सरकार द्वारा समय समय पर कुछ तिलहन लगाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु अनुदान दिया जाता है जो विभागीय अधिकारियों के बन्दर बाँट का ज़रिया है। आय प्रमाण पत्र बेटी की शादी में सरकारी अनुदान/ सहयोग में जमकर घोटाले होते हैं। बातें बहुत हैं जो वहाँ पर रहकर ही समझी जा सकती हैं और विगत कुछ वर्षों से इसका अध्ययन भी कर रहे हैं।
परन्तु यहाँ मेरा प्रश्न यह है कि विगत 75  वर्ष मे गाँव को स्मार्ट क्यों नही बना पाये, क्या अवरोध हैं और क्या सपने व मापदंड हैं उन कारणों पर रोशनी डाली जाये।
— अ कीर्ति वर्द्धन