प्रेम भरो !
खुश हैं शोर मचाने वाले ,क्या कहिए !
चुप हैं राह दिखाने वाले , क्या कहिए !
दीख रहे हैं अचरज ! नेत्रविहीनों को,
सूरज की आँखों पर जाले , क्या कहिए !
खूब कसीदे पढ़ते रात घनेरी के
हाथ धूप के लगते काले ,क्या कहिए !
हमने सोचा था कुछ होंगे महफिल में
बेसुध की सुध लेने वाले, क्या कहिए !
बातें करते रहते हैं गंगाजल की
पथ चुनते मदिरालय वाले , क्या कहिए !
उनको डर जब पर्त उधेड़ी जाएगी
निकलेंगे कितने घोटाले , क्या कहिए !
करनी है सो भरनी होगी तय है मन ,
चाहे कितनी जुगत भिड़ा ले, क्या कहिए !
फेंक रहा था जाल मछेरा , मत जाते
तड़प रहे हैं कौन निकाले, क्या कहिए !
नफरत मत दो , प्रेम भरो , सच्चाई दो
बच्चों के मन भोले- भाले , क्या कहिए !
— डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा