कविता

पर्यावरण बचाएँ

धरती पर हरियाली लाकर, पर्यावरण बचाएँ।
स्वच्छ रहे परिवेश, नागरिक सभ्य कहाएँ।
कार्बन डाई आक्साइड पीकर
वृक्ष आक्सीजन देते।
फल – फूलों से सेवा करते
हमसे क्या वे , कुछ लेते।
वृक्ष न काटें, पालन – पोषण का, सद्धर्म निभाएँ।
पर्यावरण – मित्र पशु – पक्षी,
उन्हें चाहिए संरक्षण।
जहाँ वनों की रहे प्रचुरता
वहाँ अधिक हो जल – वर्षण।
हरे – भरे वन, सुखमय जीवन, मूलमंत्र अपनाएँ।
ईंधन – पेट्रोल जलने से ही
धुआँ विषैला है फैला।
हवा अशुद्ध प्राणघातक है
जल न पिएँ दूषित – मैला।
बायोगैस – सौरऊर्जा का, अब उपयोग बढ़ाएँ।
रासायनिक उर्वरक हानिप्रद
उपयोगी जैविक खेती।
हरित प्रकृति की गोदी में पल
जैवविविधता सुख देती।
बिजली, पानी, गैस बचाकर, नित आनंद मनाएँ
मल, अपशिष्ट, प्लास्टिक, कूड़ा
कभी न नदियों में डालें।
आसपास, घर, गाँव, शहर में
मक्खी – मच्छर मत पालें।
देश स्वस्थ और बलशाली हो, जन – चेतना जगाएँ ।
धरती पर हरियाली लाकर, पर्यावरण बचाएँ।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र 

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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