गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आ सुधारें आज हम वातावरण
दे रही दूषित हवा पर्यावरण

देखते ही पेड़ कटते हैं गये
अब बिगड़ता जा रहा पर्यावरण

प्यार से समझा रहे हैं सोच लो
मत बिगाड़ो तुम यहाँ पर्यावरण

वृक्ष रहे गहने धरा के देख लो
भाव देता ही रहा पर्यावरण

रोगमुक्त रखे सदा ही देख लो
हर किसी पर कर दया पर्यावरण

देश करता ही रहे उन्नति सदा
देख करता है दुआ पर्यावरण

फेंक कचरा आज नदियाँ देखना
हो न जाये अब जमा पर्यावरण

साँस लेना अब यहाँ दूभर हुआ
दाँव पर ही क्यों लगा पर्यावरण

प्राणवायु बने हुये हैं पेड़ ही
साँस पर भारी कहाँ पर्यावरण

ज़िंदगी को हम बनायें अब सुखी
हम बचायें मिल सभी पर्यावरण

कम करें वैश्विक बढ़े इस ताप को
वृक्ष रखें रक्षित सदा पर्यावरण

ये बगीचे – बाग ही शृंगार हैं
आज हरियाली – सजा पर्यावरण

आज पावन जो रखें परिवेश को
देख रहता ही सजा पर्यावरण

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’