ग़ज़ल
लगी चोट जब प्रेम-पथ आ गया था
तुम्हारे लिए एक रथ आ गया था
अजब रास्तों, मंज़िलों की पहेली
कहाँ का सफ़र और कथ आ गया था
उसी दम गिरा था अजब इक सनाटा
कि जिस दम सबद में अरथ आ गया था
लिया एक सहरा उसे छान मारा
समुंदर लिया और मथ आ गया था
न नापा गया विश्व नापा उसी से
न नाथा गया अश्व नथ आ गया था
घिसी जूतियाँ थीं पुराने वसन थे
बुलाए बिना और श्लथ आ गया था
ग़ज़ल-दर-ग़जल वो चला आ रहा है
विषय प्यार का जो विशद आ गया था
— केशव शरण