कविता

बेटियों की बोटियाँ

कैसे कह दें कि हम करते हैं सृजन
भावनाओं का सिर्फ तो वह होता चित्रण
बोटियाँ जो कट रही है हमारी बेटियों की
आहत ह्रदय किन शब्दों में करें वर्णन|

यह वीभत्सता क्यों घटित हो रही
रिश्ते नाते सारे व्यथित हो रही
सिय पद्मिनी की कथा से कौन अनभिज्ञ
फिर किस कारण वह भ्रमित हो रही|

दुर्जनों ने किया उन पर कई प्रहार
पर नियित के आगे हुई सदा उनकी है हार
अपने भीतर वह तुम अलख जगाओ
क्यों हो जाती हो बोलो तुम इतनी लाचार|

आज ह्रदय बड़ा है आहत
क्या ऐसी ही होती है उनकी चाहत
काट कर घोट कर उबाल कर
क्या पा लिया होगा उसने राहत|

बेटियों तुम्हें अब बनना है चंडिका
खुद के अस्तित्व की तुम खुद हो मल्लिका,
कैसे और क्यों हो जाती हो इतनी विवश
अब नहीं सहन होगी ऐसी विभीषिका|

कभी फ्रीज कभी सूटकेस कभी कुकर
सोचो खुद क्या है तुम्हारे लिए बेहतर,
अभिभावक की सांसें ना जाने कब थम जाए
मत करो इतना उनका जीवन दुश्वर|

उफन रही हृदय में मेरे कई उद्गार
आहत तन मन करे चित्कार,
सनातनी रक्षा करो अपने संतति की
बताओ उन्हें हमारी संस्कृति संस्कार|

सिया के आगे रावण की क्या बिसात
पद्मिनी ने दिखलाई  दुर्जनों की औकात,
जागो मेरी पद्मिनियों  जागो वीरांगनाओं
हर लो तम को तुम अपने उदित करो एक नव प्रभात|

कोई तुम पर क्यों भला करे आघात,
जान बचेगी तब तो करोगी पश्चाताप|

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]