कविता

खुद की तलाश में हूं

 

हां मैं खुद की तलाश में हूं

भटकता रहा हूं अब तक

बिना कुछ सोचे समझे इधर उधर

मुझे खुद नहीं पता था कि

आखिर मैं किसकी तलाश में हूं ।

मगर अब मुझे समझ में आ चुका है

मेरा लक्ष्य मुझे पता चल चुका है,

मुझे खुद की तलाश करनी चाहिए

अब अच्छे से जान चुका हूं।

अब मैं पूरे मनोयोग से

खुद को तलाश रहा हूं,

अपनी तलाश में हर दिशा में

सधे कदमों से आगे बढ़ रहा हूं।

भटक गया था ये जान चुका हूं मैं,

खुद की तलाश मेरी मंजिल है

यकीनन जान चुका हूं मैं,

ईमानदारी से कहता हूं

अब खुद की तलाश में हूं मैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921