कविता

दीवानगी, दीवानगी होती है

दीवानगी दीवाना बनाती है, मस्ती में मस्ताना बनाती है,
दीवानगी ही तो हर दिन होली, हर रात दिवाली मनाती है.
दीवानगी प्रेम का नशा है, प्रेम अपने देश से भी होता है,
जिसे अपने देश से प्रेम होता है, वही अच्छा नागरिक भी होता है.
दीवानगी दैहिक प्रेम की हो, तो वह भी पूर्ण समर्पण मांगती है,
लैला-मजनू, शीरी-फरहाद की तरह, सम्पूर्ण प्रेम-वर्षण चाहती है.
दीवानगी तम्बाकू-सिगरेट-शराब की हो, तो होता है जीवन बरबाद,
दीवानगी मोबाइल की हो तो, नहीं हो सकता घर-परिवार आबाद!
दीवानगी सुसंस्कारों-सद्गुणों से हो तो, सारा जीवन संवर जाता है,
मजबूती से कायम रहते हैं नाते-रिश्ते, व्यक्तित्व निखर जाता है.
दीवानगी है किसी लक्ष्य को पाने के लिए अनवरत-अथक प्रयास,
दीवानगी में इतने दीवाने न बनें, कि खो बैठें विश्वास का उजास.
दीवानगी एक हद तक अच्छी होती है, दीवानगी में हार भी होती है,
दीवानगी मुहब्बत की हो तो, लौकिक और अलौकिक भी होती है.
दीवानगी धूप-छांव होती है, दीवानगी शहर-गांव-जिंदगी होती है,
दीवानगी शिकायत नहीं बंदगी होती है, दीवानगी, दीवानगी होती है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244