नए मानक गढ़ता चल
पंचतत्व से बना है तू मिट्टी के पुतले,
मिट्टी में ही मिल जाना है इक दिन पगले,
किस बात का रखता है घमंड-अभिमान,
रखना है तो सबसे प्रेम-भाव रख ले.
खाली हाथ आया था, अब ऐसा कुछ कर ले,
खाली हाथ नहीं जाना है, मन में धर ले,
जीने के लिए कर्म तो करना ही पड़ता है,
साथ ले जाने को सुकर्मों से हाथ निज भर ले.
कुम्हार बनाता है सुंदर मिट्टी के पुतले,
जरा-सी ठोकर लगते ही टूट जाते हैं,
पंचतत्व से बने मिट्टी के पुतले तो,
अक्सर बिना ठोकर लगे भी टूट जाते हैं.
मिट्टी में ही मिल जाना है यही सार है,
दर्प-द्रोह के चक्रव्यूह में फंसना बेकार है,
क्षिति-जल-पावक-गगन-समीर की माया है,
माया के पीछे जो पड़ा, वह बेज़ार-ही-बेज़ार है.
सत्य की राह पकड़ तू बढ़ता चल,
दृढ़ रह सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चल,
अपने निश्चित लक्ष्य को पाने के लिए,
छल-कपट छोड़ नए मानक गढ़ता चल.