कविता

डमरू वाले शंकर भोले

शिव का प्रतीक है डमरू,
शिव की शक्ति है डमरू,
शिव का नाद है डमरू,
शिव धारण करते हैं डमरू.
डमरू की आवाज से धरती डोले,
डमरू डम-डम डम-डम बोले,
डमरू प्रतीक है पाप के नाश का,
डमरू की आवाज जेवन का रस घोले.
गले में सर्पों की माला,
नीलकंठ के कंठ में हाला,
तन पर बाघाम्बर सोहे,
शिव कहलाते प्रभु डमरू वाला.
शिव महिमा है अपरंपार,
अखिल सृष्टि के शिव आधार,
बाएं सोहे गौरां रानी,
गोद में हैं गणपत साकार.
तीन लोक के शिव हैं स्वामी,
अविनाशी हैं कैलाशवासी,
डमरू वाले शंकर भोले,
पल में हरते यम की फांसी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244