कविता

किस्मत

 

हमारी आपकी किस्मत

कब कहां कैसे गुल खिलाएगी?

गुल खिलाने से पहले

कभी नजर तो नहीं आयेगी।

किस्मत का चाल चरित्र चेहरा

हम सब नहीं समझ सकते,

किस्मत के भरोसे हाथ पर हाथ रखे

भी तो नहीं रह सकते,

किस्मत को दोषी ठहराकर

गुमराह भी नहीं हो सकते।

किस्मत तो अपना काम कर ही रही है

हम अपना काम क्यों नहीं कर सकते?

माना कि किस्मत के खेल निराले हैं

किस्मत के खेल के साथ साथ

हम अपना खेल क्यों नहीं खेल सकते?

किस्मत अपने काम में मगशूल रहती है

तो हम निठल्ले बन कर रहें

और अच्छा बुरा किस्मत की बात है

यह भूलकर आगे क्यों नहीं  बढ़ सकते?

किस्मत पलटना जब हमारे हाथ में है

तो किस्मत के साथ आंख मिचौली

हम भलाक्यों नहीं कर सकते?

किस्मत किस्मत रटते रटते जीवन भर

रोते तो नहीं रह सकते?

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921