कलम भिगोकर
जिंदगी की कशमोकश मे उलझ हम रह गये
ना चाहकर भी हम सब खामोश रह सह गये।।
दर्द ही दर्द दिखे है, हमको तो इस जिंदगानी में
दर्द लिखते-लिखते, हम तो आसूंओं में बह गये।।
बढ़ गये सब मेरे अपने मेरे आगे हंसते-हंसते
छोड़ दर्द में तन्हा हमको, हम तो वहीं रह गये।।
अपनी उम्र खपाई मैंने अपनों के लिए हरदम
अपनों ने ही नकारा हमें, हम सोचते ही रह गये।।
दर्द-ए जिंदगी मे कोई जब मेरा साथ ना निभाया
मेरी कलम से मोहब्बत पा, हम उसके हो रह गये।।
सोचते क्या ये दर्द, ये तन्हाई मेरी कभी घट पाएगी
सोचते-सोचते कलम संग, हम यही सोचते रह गये।।
वीणा के भीतर दबी दर्द-ए चीख, कुछ बताती सबको
दर्द-ए स्याही मे भिगो कलम, लिख सब तन्हा रह गये।।
— वीना आडवाणी तन्वी