ख्वाबों क़ी खातिर
अपने ख्वाबों क़ी खातिर
दौड़ता ही रहा
और दौड़ कर
बहुत दूर निकल गया
इस दौड़ मैं
मेरे ख्वाब तो पूरे हुए
पर मैं अधूरा रह गया
न लौट सका फिर वापिस
अपनों से बहुत दूर हो गया
जब भी देखता हूँ पीछे मुड़कर
खुद को अकेला खड़ा पाता हूँ
रात जब गहराती है
नींद आँखों से कोसों दूर
एक अतृप्ति
दिल के एक कोने में बसी होती है
सब कुछ पाने के बाद भी
जैसे सब कुछ में हार गया.