गीत/नवगीत

गीत

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

खुशबू के संदेशे देती फूलों वाली डाली।

               इस कारण ही कुदरत की मर्यादा में प्यार दिखे।

               शुद्धता की अच्छाई में सारा सभ्याचार दिखे।

               मानव परोपकारी है तो सभ्यता शक्तिशाली।

               स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

जीवनशैली मुद्धत से भारत की पहचान रही।

दुख सुख की परिपक्कता में इस की ऊंची शान रही।

शुभआशीषों के गुलशन में सच्चा परिश्रमी माली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

               संयम सेवा जप तप श्रद्धा सरंक्षण सुन्दरता।

               वृ़क्षों से है दुनियां भीतर सांसों की प्रबलता।

               इस की गोद में जागृति की उत्तम है हरियाली।

               स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

नद-नदियां और निर्झर होते सभ्याचार का आधार।

प्रकृति जीव कथा निर्जीवो में लाती है संस्कार।

धरती मां ने आंचल भीतर स्मद्धि है संभाली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

रंगों-ढंगों संग-उमंगों पलक ललक से न्यारे।

इस कर के ही अच्छे लगते कुदरत बीच नज़ारे।            

जलते दीपक से जंचती है जैसे सुन्दर थाली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली ।

सब धर्मो के पाक-पवित्र आत्म निर्भर ग्रंथो में।

जलवायु प्राण रहे हैं, जान रहें है अर्थों में।

इस की महिमा सत्यावादी उत्पति है मतवाली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

               नैतिकता की मंजिल में है सुन्दर-सुन्दर गांव।

               तब ही सब को अच्छी लगती धूप कहीं और छांव।

               शुद्धता, बुद्धता, भौतिकता की उच्चता,सर्व निराली।

               सवच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

तन की जन्नत में होती हैं मन्न्तें और मुरादें।

अच्छी सेहत-सहूलत में ही अच्छी है फरियादें।

योगा सभ्याचार में उत्तम योगा वाली ताली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

               पवन सुंगधि पैदा करते हवन यज्ञ और पूजा।

               उत्तम अच्छे जीवन में तो इस का मूल्य ना दूजा।

               दुनियां के लिए कुदरत ने तो प्रत्येक ऋतु संभाली।

               स्वच्छ पर्यावरण में होतीे जीवन की खुशहाली ।

खून पसीने भीतर रह कर उधमी है किरसान।

इस के ही स्वरूप में प्रगट हो जाते है भगवान।

धरती भीतर सोना पैदा करते हल्ल पंजाली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

               इस के वंदन से ही बनता बंदा कर्मठ किरती।

               तव ही आत्म तुष्टि होती मस्तिष्क भीतर बिरती।

               लोरी भीतर घुट्टी देती धरती कर्मों वाली।

               स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

आर्युवैदिक औषधियों देती है प्रमाण।

दाती वनकर मुर्दे भीतर पा देती है जान।

पीपल, शीशम, अर्जुन, केसर, मौलशिरी गुललाली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

               आओ सारे मिल जुल कर धरती को स्वर्ग बनाएं।

               चांद-सितारों भांति भिन्न-भिन्न घर घर वृक्ष लगाएं।

               फिर तो अपने आप करेगी शुद्धता मां रखवाली।

               स्वच्छ पर्यावरण होती जीवन की खुशहाली।

पानी से पतली होती गुड़ से होती मीठी।

बालम की तो हर इक कविता जन्नत की प्रतीती।

प्रतीकों एंव बिम्बों ने है शब्दों में खंगाली।

स्वच्छ पर्यावरण में होती जीवन की खुशहाली।

— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409