अच्छा था वह मिट्टी का घर
घर बनाने पर जोर है सब बड़े बड़े घर बना रहे
बेटी की हो गई शादी बेटा बहू विदेश जा रहे
माता पिता को छोड़ आये बृद्धाश्रम में
खुद घर में बैठ कर आनंद मना रहे
कुछ समय तक बड़ा घर लगता बहुत अच्छा
फिर झाड़ू पोंछा भी लगाना मुश्किल हो जाता
कबूतरों की बीट पड़ी होती है चारों तरफ
तब गुज़रा वक्त फिर याद है आता
छोटा सा मिट्टी का वह घर ही अच्छा था जहां
मां बाप के साथ रहता था छोटा सा परिवार
गूंजता रहता उसमें उनकी हंसी ठिठोली का शोर
बहती थी हर तरफ आपसी प्यार की बयार
फफक कर रोते हैं उस बड़े घर की चारदीवारी में
कोई सुनने वाला नहीं उनकी चीखो पुकार
बच्चों को पाल पोस कर क्या इसी दिन के लिए बड़ा किया
पैसों की खातिर देश छोड़ा भूल गए मां बाप का उपकार
मन करता है कोई बात करे उनसे
कौन अब करेगा उनकी देखभाल
अपने अपने करके ज़िन्दगी लुटा दी
समझ नहीं पाए यह था मोह माया जाल
कितने लाड़ प्यार से पाला था मां बाप ने उन्हें
अपने जीवन भर की पूंजी उन पर थी लुटाई
जो भूल गए अपने माता पिता को ही
किस काम के ऐसे संस्कार और ऐसी पढ़ाई
— रवींद्र कुमार शर्मा