पावस गीत
आशाओंं का दीप जला लो, तुम भी अपने मन में।
हम तुम झूला झूलेंगे अब की फिर से सावन में।।
देखो पुरवा लेकर अाई, प्यारा मौसम बड़ा सुहाना ।
बारिश की बूंदों ने गाया, कैसा अनुपम गीत अजाना।।
अनुभव होता मुझे तुम्हारा, इन बूंदों के चुम्बन में।
हम तुम झूला झूलेंगे अब की फिर से सावन में।।
देखो इस धरती ने फिर से चूनर भी हरी पहन ली है।
ऐसा लगता है मानों ये, अपने पिय के देश चली है।
बादल भी फिर झूम उठा है, धरती के आमंत्रण में।
हम तुम झूला झूलेंगे, अब की फिर से सावन में।।
— सौष्ठव