कविता

जिंदगी

जिंदगी मंज़िल नहीं

कि पा ली और थम गई

निरंतर एक यात्रा है यह 

कई  मुकाम होंगे इसमें 

थक रूकती है जिंदगी

कुछ दिन उन मुकामों पर

फिर आगे  बढ़ जाती 

जिस दिन रुक गई यह यात्रा 

तमाम समझो हुई जिंदगी उस दिन 

और मौत 

जिंदगी का अगला मुकाम

बन आ खड़ी हुई 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020