मौन संवाद….
मौन से तेरी
हो रही थी बातें,
जैसे शुष्क हृदय में
जज्ब हों बरसातें|
भीग गई बारिश में
कुंतल तेरे काले,
छूने लगे आनन को
केश तेरे घुंघराले|
ढक दिया हो बादलों
ने जैसे कि मेरा चांद,
हटाने चला घन
छाया था उन्माद|
भाता हृदय को मेरे
करना मौन से संवाद,
ना कोई किट पीट
ना हो वाद विवाद|
नजर पड़ी ज्यौं तुझ पर
तू जा रही सड़क पर,
वही कुंतल तेरे काले
छूते आनन केश घुंघराले|
वो जो था, था वो संवाद
अब जो है वह है यथार्थ,
काश कि कर लेता
कुछ देर और मौन संवाद,
शायद वह भी हो जाते पूरे
हो जाता मैं आबाद|
— सविता सिंह मीरा