ग़जल
सिसकती जिन्दगी में साज क्या सजा पाना,
बड़ी मुश्किल है अपनी आबरू बचा पाना ।
आंखों में शोले और हाथ जिनके खंजर है,
ऐसों के साथ भला , साथ क्या निभा पाना।
आदमी आजकल चेहरों में लगा है जीने ,
आदमी क्या ? कठिन अंदाज यह लगा पाना।
राम की आज कल मिलीभगत है रावण से ,
अंगदों को कठिन अब , पांव है जमा पाना ।
हौसला साथ ले चलता मैं सदा ‘ शिवनन्दन ‘
किसी में दम नहीं मुझको, अब आजमा पाना।
— शिवनन्दन सिंह