गीतिका/ग़ज़ल

ग़जल 

सिसकती जिन्दगी में साज क्या सजा पाना,

बड़ी मुश्किल है अपनी आबरू बचा पाना ।

आंखों में शोले और हाथ जिनके खंजर है,

ऐसों के साथ भला , साथ क्या निभा पाना।

आदमी आजकल  चेहरों में लगा है  जीने ,

आदमी क्या ? कठिन अंदाज यह लगा पाना।

राम की आज कल  मिलीभगत है रावण से ,

अंगदों को कठिन अब , पांव है जमा पाना ।

हौसला साथ ले चलता मैं सदा ‘ शिवनन्दन ‘

किसी में दम नहीं मुझको, अब आजमा पाना।

—   शिवनन्दन सिंह 

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968