लम्हा-लम्हा जिन्दगी
जिन्दगी के लम्हों को
जितना भी समेटो
रेत की ढेर है यह
झरती ही जाती है।
बनाओ अगर इसमें
अपना नामो-निशान
उड़ती हवा का झोंका
उसे मिटा जाता है।
हर पल बनता है
यहाँ बालू का टीला
समय के साथ-साथ
दिशा बदलता रहता है
कभी हम न होंगे यहाँ
कभी तुम न होगे यहाँ
कभी न भीड़ होगी यहाँ
कभी न होगी तन्हाई यहाँ।
पर लम्हों का पुलिन्दा
गुजरता ही जाएगा
जाते-जाते वह अपनी
हर दास्ताँ सुनाएगा।