कविता

गौमाता मेरी माता

हे गौमाता तुम्हें नमन है

चरणों में तेरे नित वन्दन है

तेरी महिमा का बोध नहीं हैं

अज्ञानी मूरख हम जो हैं।

तेरा ध्यान नहीं रख पाते 

घमंड में आज चूर हम रहते,

महत्व तेरा हम नहीं समझते

झूठ मूठ नादान हैं बनते।

पूजा तेरी अब छोड़ चुके हैं,

तुझको पशु अब मान रहे हैं

हम तुझको कहते गैया हैं

तू तो मैया है भूल रहे हैं।

हे मां हमको माफ करो

हम बच्चों कर कृपा करो,

करुणा ममता की वारिश कर

हम सबका कल्याण करो।

हम सब तेरे बच्चे हैं

थोड़ा अकल से कच्चे हैं

पर तू तो सबकी माता है

दूर कहां अपना नाता है।

दया दृष्टि तुम हम पर रखना

भूल हमारी क्षमा तू करना

हमें अलग मत तू कर देना

यही निवेदन है मेरी माता। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921