संस्मरण

आग में तपकर बनी कुन्दन

“यूँ ही नहीं होती हाथों में उंगलियाँ,
ईश्वर ने किस्मत से पहले मेहनत को रखा है।”

मैं आसिया फारुकी आपको अपनी वो कहानी बताऊँगी जब मैंने बिना डरे लगातार परिश्रम से हालातों का सामना किया। समाज का मुकाबला किया, परेशानियों को दरकिनार कर दुनिया में कामयाबी हासिल करके सबको दिखा दिया हिम्मत से सब कुछ जीता जा सकता है।
जब मैं मासूम सी दुबली पतली मात्र 19 साल की लड़की थी। जिसकी अभी पढ़ाई ही चल रही थी, तभी परिवार वालों ने मिलकर मेरे विवाह की बात तय कर दी। मैं बस चुपचाप सब कुछ देखती रही। मैं विवाह नहीं करना चाहती थी। आगे पढ़ना चाहती थी। कुछ बनना चाहती थी, पर मेरी सुनता कौन? माँ से जाकर हर बार यही बात बोलती माँ मुझे पढ़ना है, आगे कुछ करना है, कैसे कर पाऊँगी? मेरी भूरी आँखें बस आँसुओं में डूब जाती और अपनी किताबों को सीने से लगाए रोते रोते सो जाती।
बीए. प्रथम वर्ष की परीक्षा और घर में शादी का माहौल छत पर एक कोने में चटाई बिछा कर खुद को किताबों में डूबा लेती। मई-जून की गरमी जब सब पंखे कूलर में सोए होते मैं किसी कोने किनारे किताबों में गुम होती। इंग्लिश लिटरेचर से बीए. का एग्जाम देना था साथ ही मैं आईटीआई भी ज्वाइन कर चुकी थी। सुबह कॉलेज जाती वहाँ से आकर नोट्स बनाती रात में बैठकर आईटीआई की फाइल तैयार करती।
धीरे-धीरे शादी का दिन आ गया और मैं एक बहुत बड़े ससुराल में भेज दी गई। मेरी तो दुनिया ही बदल गई! यह ऐसा परिवार था जहाँ घर की बहू की पढ़ाई और नौकरी किसी को भी पसंद नहीं थी। सभी इसके खिलाफ थे मेरी जिंदगी में दर्द आँसू और परेशानियाँ आने लगी। पढ़ाई के जुनून ने मुझे कभी भी पीछे हटने ही नहीं दिया वक्त गुजरने लगा। किसी तरह बीए. पूरा किया इसी दौरान मुझे एक बेटी हुई। छोटी सी बच्ची को लेकर रातों में उठ उठ कर पढ़ती कभी घर वालों से छुपके पढ़ती। रात में जब सब सो जाते तो मैं किचन की लाइट जलाकर जमीन में बैठकर अपने नोट्स तैयार करती। कभी-कभी तो सारी लिखती रहती। सुबह अज़ान के वक्त जब मेरी नन्ही सी बच्ची भूख से रोती तब उसके पास दौड़कर जाती उसे खिलाती पिलाती।
मैं वक्त की पाबंद और दूसरों की परवाह करने वाली लड़की थी। सारी परेशानियों और ससुराल वालों की तानें भरी बातों को नजरअंदाज करके पढ़ाई करती रही। बीए के बाद फिर एमए. पूरा किया ससुराल वालों ने परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी यहाँ तक कि जब मैं बीटीसी करने लगी तो मेरे नोट्स और किताबें जला दी जाती थी। यह सारी बातें मुझे परेशान करती थी। बीच-बीच में मेरे पति भी पढ़ाई छुड़ाने की धमकी देते मेरी किताबें और मेहनत की किसी को कद्र ही नही थी। फिर भी मैंने खुद को टूटने नहीं दिया दोबारा से सारे नोट्स तैयार करती किचन के पल्लो, दरवाजों, खिड़कियों पर अपने नोट चिपका देती और खाना बनाते, सफ़ाई करते, बच्चे का काम करते करते दीवारों में लगे चार्ट पेपर पर लिखी परिभाषाएं और उत्तर याद करती जाती और काम करती जाती। सही कहते हैं “इतना आसान नहीं होता जिंदगी जीना इसके लिए हमें किस्मत से लड़ना पड़ता है।”
शादी के बाद भी मैने लगातार छः वर्षो तक पढ़ाई की और सारी परीक्षाएं पास की और बीटीसी ट्रेनिंग में भी पूरी तन्मयता और लगन से अपने प्रशिक्षण को पूरा किया क्योंकि वो मेरे लिए एक कठिन दौर था। तबतक मुझे एक बेटा और हो चुका था। बीटीसी के दौरान मैं लंच में रोज़ अपने बच्चे को खाना खिलाने घर आती और जल्दी जल्दी वापस जाती फिर शाम तक घर का सारा काम पूरा करके रात में पढ़ाई करती बस यही सोंचती कि यह दौर भी खत्म हो जाएगा हर कठिनाई कुछ राहत दिलाएगी। ससुराल वाले रोज़ मुझे बातें सुनाते पढ़ कर क्या करोगी? घर के काम ही तो करने हैं। मैं इन सभी बातों से उदास रहने लगी और इसी वजह से मैं गुमसुम रहने लगी, और तो और सासू माँ जब मेरे पकाए खाने को सबके सामने खराब कहती तो मैं फूट-फूटकर रो पड़ती फिर अपनी डायरी में माँ से पूछकर सारी रेसिपी लिखती और कोशिश करती कि खाना ज़ायकेदार बनाऊँ, खाना बनाना भी सीखती और पढ़ती भी जाती मुझे अपनी पढ़ाई का सपना पूरा करना था।
मैं उस दिन बहुत खुश हुई जब मेरे पापा ने मेरी बीटीसी की सारी किताबें लाकर मुझे सौंपा और मैं पूरी तन्मयता से अपने किताबों को पड़ती हुई आगे बढ़ती गई। धीरे-धीरे वह दिन भी आ गया जब मेरे हाथों में उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर था, जो मेरे ससुराल में आज तक किसी बहू ने नहीं पाई थी। मेरी पहली पोस्टिंग हथगाम के बुशहरा प्राथमिक विद्यालय में हुई जहाँ मैंने ढाई वर्ष अकेले काम किया। ये विद्यालय भी मेरे लिए अनेकों संघर्ष लेकर आया था। इतनी दूर था की कोई साधन भी नही जाता। मैं मुसीबतों के दिन काट रही थी। इसके बाद 10 मई 2016 को पदोन्नति पाकर मैं प्राथमिक विद्यालय अस्ती आ गई। विद्यालय की टूटी फूटी इमारत व गंदगी का अंबार, ना रसोईघर ना शौचालय सभी कमरों में ताला बंद। मैं इन सभी चीज़ों से बहुत परेशान हुई। स्कूल में जिधर नज़र दौड़ती उधर कूड़ा और गंदगी पाती। कुछ अराजक तत्व विद्यालय में शराब की बोतलें और ताश के पत्ते लेकर बैठे मिलते। इन्हें मना करने पर यह स्कूल में तोड़फोड़ करते। मैं सोचती थी जब तक विद्यालय का भौतिक परिवेश नहीं बदलूंगी नामांकन बढ़ाना कठिन होगा।अराजक तत्वों को विद्यालय से हटाने के लिए मुझे कोतवाली के चक्कर भी काटने पड़े। फिर क्या मैं परिषदीय स्कूल की बदहाली को देख उसे बदलने में लग गई। मैंने बच्चों और मानवता की सेवा के लिए काम करना शुरू कर दिया। मानवीय मूल्यों जैसे दया, उदारता, करुणा, मेहनत, लगन आदि गुणों को अपने बच्चों में प्रेषित करती रही। विद्यालय के कोने-कोने को सजाया-संवारा आज भी मैं विद्यालय में अकेली शिक्षिका हूँ, और कठिन परिश्रम कर रही हूँ।
मैं एक खराब विद्यालय को प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय बनाना चाहती थी इसके लिए अपने आप को समर्पित कर दिया। अस्ती विद्यालय में खुद के छः लाख रुपए लगाए जो किसी भी शिक्षक के लिया इतना आसान न हो शायद, साथ ही अपने शिक्षण को बेहतरीन बनाने के लिए बहुत सारे नवाचार किए “प्रोजेक्ट समझ” चलाया “ग्रीन आर्मी” का गठन किया। मैं अपनी शिक्षा प्रणाली में ऐसे सिस्टम को क्रिएट करना चाहती थी जो छात्रों को सशक्त करें शैक्षिक स्तर में सुधार करे। अभिभावकों की पाठशाला चलाया और अभिभावकों को साक्षर किया। ड्रॉपआउट बच्चों को विद्यालय में प्रवेश कराया। विद्यालय में कई तरीके के कैंप का आयोजन करके महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास किया। हरियाली और पर्यावरण पर कार्य करते हुए विद्यालय के आस पास सफाई अभियान चलाया। इसके लिए मुझे “राज्यपाल पुरस्कार 2019” और “राज्य मिशनशक्ति पुरस्कार 2021* से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा नवाजा गया। आज मुझे राज्य स्तर के अनगिनत पुरस्कार प्राप्त हैं। मुझे फक्र है की मैं हजारों बच्चों की मुस्कान हूँ। आग में तपकर कुंदन बन चुकी हूँ और एक मजबूत चट्टान की तरह समाज के सामने खड़ी महिलाओं और बच्चियों की तरक्की और मजबूती के लिए काम कर रही हूँ। मैं एक “आदर्श अध्यापिका” के रूप में पूरे प्रदेश भर में अपनी पहचान बना चुकी हूँ।
“हालात कैसे भी हो हमें सब्र का दामन नहीं छोड़ना चाहिए और लगातार मेहनत करते रहना चाहिए।”

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र