कविता

मैं ही राष्ट्रपिता

अभी अभी स्वर्ग लोक से 

गांधी जी का फोन आया,

अपनी जयंती मनाने की औपचारिकता

निभाने के लिए हमारा धन्यवाद किया।

मैंने भी उनको नमन किया

और उनके धन्यवाद ज्ञापन का आभार व्यक्त किया।

फिर उनका हाल चाल पूछा

तो उन्होंने से बताया

मेरा हाल चाल तो ठीक है,

भारत के स्वच्छता अभियान की यहां भी गूंज है,

गंदगी भले ही साफ नहीं होती

टीवी,अखबार, सोशल मीडिया पर

सफाई अभियान में जुटे होने की 

तस्वीरों की भरमार से यूं कहो कि बाढ़ आ गई है,

जबकि तुम अपने आस पास ही देख लो

कथनी करनी में फर्क साफ नजर आयेगा।

ठीक वैसे ही कि जैसे हर कोई मेरे पद चिन्हों पर

चलने की सौ सौ दुहाई देता है,

बस एक कदम चलता भर नहीं है,

गांधीवादी होने का आज जितना दंभ भरा जाता है,

तुम्हें तो पता नंबर दो का धन

उसकी तिजोरी में उसी हिसाब से 

धन का भंडार जमा होता जाता है।

मेरी विचारधारा का खूब राग अलापा जाता है

जाति धर्म, ऊंच नीच के नाम पर सिंकती रोटियां से

हिंसा की ज्वाला से सांप्रदायिक सदभावों को

मजबूत बनाने का काम किया जाता है।

मेरे पुतलों का उपयोग और मेरी समाधि पर 

माथा टेककर श्रद्धा सुमन अर्पण किया जाता है,

स्वार्थ की राजनीति के लाभ हानि 

और समय सुविधा के अनुसार ही किया जाता है।

मेरी जयंती, पुण्यतिथि और मेरे विचारों का

अब वास्तव में कोई मतलब नहीं है

सब कुछ औपचारिकतावश ही किया जाता है,

मरने का बाद भी जब मुझे घाव दिया जाता है

राष्ट्रपिता का इतना सम्मान 

अब मुझे समझ नहीं आता है।

एक आग्रह, अनुरोध तुमसे करता हूँ

हो सके तो संसद में एक प्रस्ताव पास करवा दो

मुझे राष्ट्रपिता के पद से आजाद करा दो

मेरी जयंती पुण्यतिथि मनाना बंद करा दो,

मेरी समाधि पर अब हर किसी का

माथा टेकना, श्रद्धा सुमन अर्पित करना

मेरे पुतलों के पास धरना, प्रदर्शन, अनशन  

पूर्णतया वर्जित है का बोर्ड लगवा दो,

और हां राष्ट्रपिता का पद चाहो तो तुम ले लो

मैं तुम्हारे पक्ष में अपना सहमति पत्र दे दूंगा,

कम से कम मैं भी किसी को राष्ट्रपिता तो कहकर

खूब मनमानी कर सकूंगा,

राष्ट्रपिता की पीड़ा पर मैं भी तो हंस सकूंगा

औपचारिकताओं के घोड़े का घुड़सवार तो बन सकूंगा।

मैं भी अपने राष्ट्रपिता की जयंती पुण्यतिथि मनाने की

औपचारिकताओं का आनंद तो ले सकूंगा,

अपना उपहास उड़ते देखने से तो बचा रहूंगा।

गांधी जी की बात सुनकर मैं सन्न रह गया

जुबान पर अलीगढ़िया ताला लटक गया।

पर मेरा मन गाँधी जी की पीड़ा से जरुर घायल हो गया

ईमानदारी से कहूं तो गांधी जी के प्रस्ताव का 

मैं भी कायल हो गया,

उनका प्रस्ताव संसद में पास कराने 

मैंने उन्हें पूरा आश्वासन दे दिया,

तब तक आप लोग मान लीजिए 

आज से गांधी जी की जगह

मैं ही राष्ट्रपिता हो गया। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921