दस्तक सावन की आग लगाए कैसी,
मेघा गरजो और ज़ोर से बरसो न,
भिगा दो तन मन, उन्हें बुलाओ न,
इन बूंदों में भीगु, मगन मतवाला मैं,
गीत मधुर सा कोई तुम भी गाओ न,
सखी आंखों में आँसू क्यों लाती है,
आयेंगे सजना दिल से बुलाओ न,
आंगन मेरा प्यारा प्यारा राह तके है,
आओ सखी साथ मेरे इसे सजाओ न,
दस्तक सावन की आग लगाए कैसी,
सखियां आने वाली तुम भी आजाओ न,
मुस्कानों को बांटों तुम भी आजाओ न,
खुशी मनाओ, संवरो और मुस्काओ न,
बचपन प्यारा न्यारा न्यारा याद करो तुम,
सद्भावना के दीप सखियों जलाओ न,
आसमानों को किसने छुआबोल सखी री,
दो पल ही सजन तुम अपने दे आजाओ न,
दिल के तारों पर आहट कैसी सावन की,
दिल की धड़कन क्या बोले बतलाओ न,
दिल पागल सा गुम सुम रहने लगा क्यों,
आभी जाओ इसको कुछ समझाओ न,
बरगद बूढ़ा, पगडण्डी भी सुनी सुनी सी,
पेड़ों पर जो नाम लिखे थे पढ़ जाओ न,
मैं सीधा साधा सा एक मासूम परिंदा,
ज़ुल्फ़ों में अपनी ऐसे तो उलझाओ न,
परदेशी परदेशी गीत सुहाना कहां लगे है,
दर्द बढ़ा है हद से लौट के वापस आओं न,
तुम भूले हो मुझको मैं भूला दूँ कैसे तुमको,
हिकमत है कोई तो मुश्ताक़ हमें बताओ न,
— डॉ .मुश्ताक़ अहमद शाह “सहज़”